बनते-बिगड़ते चुनावी समीकरण
- By Vinod --
- Wednesday, 12 Jan, 2022
The deteriorating electoral equations
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान नेताओं का पाला बदल मौसम भी पूरे यौवन पर है। पांच साल पार्टी और सरकार के साथ रहने के बावजूद अब अनेक नेताओं को यह समझ में आ रहा है कि वे अब तक गलत पार्टी में थे। खैर राजनीति इसी का नाम है, सुबह कुछ, दोपहर कुछ और शाम होते-होते पूरी तरह बदल जाने वाले हालात को ही राजनीति कहा जाता है। भारतीय लोकतंत्र का आधार भी यही है, लेकिन जरूरत इसकी भी है कि नैतिकता का तकाजा खत्म न हो और सिद्धांत अगर कहीं हैं तो उनकी रक्षा हो। बेशक, यह संभव नहीं है, लेकिन फिर भी अगर कोई राजनीतिक इनकी रक्षा करेगा तो इससे उसकी राजनीतिक वैल्यू में इजाफा ही होगा। पंजाब में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदला है, आश्चर्य इसका है कि यहां भाजपा को पसंद करने वाले नेताओं की संख्या एकाएक बढ़ गई है। यह कोई तंज नहीं है, अपितु सच्चाई भी है। भाजपा का गठबंधन पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस के साथ हो चुका है, लेकिन कैप्टन के साथ न जाकर कांग्रेस समेत दूसरी पार्टियों के नेताओं के लिए भाजपा पसंदीदा बन गई है।
पिछले दिनों सामने आया था कि चुनावों के बाद कैप्टन अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर सकते हैं, संभव है उनकी कार्ययोजना यही हो। बावजूद इसके पंजाब में भाजपा का अकाली दल से अलग होने के बाद जनाधार बढऩा राज्य के लोगों में उसकी स्वीकार्यता का परिचायक है, यह तब है जब तीन कृषि कानून वापस लिए जा चुके हैं और बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक के बाद राज्य की सियासत सरगर्म है। मालूम हो, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की बुआ के बेटे व पूर्व कांग्रेस विधायक अरविंदर खन्ना और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के चचेरे भाई जसविंदर सिंह धालीवाल सहित विभिन्न पार्टियों एवं संगठन के कई नेताओं ने भाजपा का हाथ थाम लिया है। इसके अलावा गुरचरण सिंह टोहड़ा के परिवार के सदस्य भी भाजपा में आए हैं। बताया गया है कि दमदमी टकसाल के पूर्व प्रवक्ता और सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन के पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष सरचांद सिंह भी भाजपा में आ रहे हैं। उनका एक बयान भी सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार ने सिखों के मुद्दों पर गंभीरता दिखाई है।
पंजाब और केंद्र सरकार के बीच सदैव खींचतान रही है, लेकिन यह भी सच है कि पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने इतनी संजीदगी से सिख समाज को आगे लाने की चेष्टा की है। पंजाब में कांग्रेस और शिअद ही राजनीति के पर्याय हो गए हैं, लेकिन इस बार के हालात कुछ अलग दिख रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने जहां मजबूती से अपने कदम आगे बढ़ाए हैं, वहीं अब भाजपा का विस्तार राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस के लिए चुनौती बन रहा है। उधर, उत्तर प्रदेश में भी तेजी से घटनाक्रम बदल रहा है। योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने पांच साल बाद फिर पाला बदल लिया है, वे बसपा से भाजपा में आए थे लेकिन अब भाजपा से सपा में चले गए हैं। हालांकि भाजपा में रहते उनकी बेटी डॉ. संघमित्रा मौर्य सांसद बनी हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ने आरोप लगाया है कि उनकी पार्टी में सुनवाई नहीं हो रही थी। हालांकि माना जा रहा है कि बेटे को टिकट की मांग पूरी न होते देख उन्होंने पाला बदल लिया। इस बीच विधायक रोशन लाल वर्मा, भगवती प्रसाद सागर और बृजेश कुमार प्रजापति के इस्तीफे की भी सूचनाएं हैं। इन सभी विधायकों का संबंध मौर्य खेमे से है। मौर्य पिछड़े समाज से आते हैं और भाजपा ने उन्हें इसी प्रयोजन से अपने साथ मिलाया था। बेशक, मौर्य के भाजपा छोडऩे से पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है, यही वजह है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रूठे हुए नेताओं को मनाने के लिए अपने वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है, लेकिन फिर भी यह विडम्बना है कि जिस पार्टी से बेटी सांसद हैं, पिता उसी पार्टी के विरोधी के साथ अब राजनीतिक सफर की शुरुआत करने जा रहे हैं।
क्या उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य भी भाजपा को अलविदा कहेंगी, यह अभी स्पष्ट नहीं हो सका है। समाजवादी पार्टी ने राज्य में भाजपा को सुरक्षात्मक होने को विवश कर दिया है, पूर्व मुख्यमंत्री एवं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की सभाओं में उमडऩे वाली भीड़ औचक नहीं जान पड़ रही। भाजपा को यूपी में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है और जनता जोकि हमेशा परिवर्तन के मूड में रहती है, सत्ता में बैठी पार्टी के खिलाफ निर्णय ले सकती है। हालांकि सर्वे में आ रहे नतीजे कांटे की टक्कर के बीच भाजपा को फिर सत्ताशीन होते दिखा रहे हैं, ऐसा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की वजह से भी हो सकता है। उनका पांच साल का कार्यकाल पाक-साफ रहा है। खैर, भाजपा के लिए राज्य में मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। बुधवार को पार्टी को एक और झटका तब लगा जब एक और विधायक ने उसका साथ छोड़ दिया। दो दिनों में पांचवें विधायक ने पार्टी को झटका को दिया है। भाजपा विधायक अवतार सिंह भड़ाना ने भी पार्टी छोड़ दी है। भड़ाना राष्ट्रीय लोक दल में शामिल हो गए हैं, उन्होंने पार्टी अध्यक्ष जयंत चौधरी से मुलाकात के बाद इसकी घोषणा की। हरियाणा से संबंध रखने वाले अवतार सिंह भड़ाना पश्चिम यूपी में भाजपा को मजबूती प्रदान करने वाले नेता माने जाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश समेत पांचों राज्यों में बन-बिगड़ रहे राजनीतिक समीकरण क्या करवट लेंगे, के संबंध में अभी से कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता, अभी राजनीतिक चरमोत्कर्ष बाकी है।